सोशल मीडिया ने ले रखी है सबकी जान,मनोचिकित्सक है परेशान,कैसे बचाये सबकी जान-डॉ ओम प्रकाश

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सोशल मीडिया ने ले रखी है सबकी जान,मनोचिकित्सक है परेशान,कैसे बचाये सबकी जान-डॉ ओम प्रकाश

 

 

डॉक्टर ओम प्रकाश उपचिकित्सक अधिकारी प्रोफेसर एवं यूनिट प्रमुख मनोचिकित्सक विभाग ईभास अस्पताल

 

 

सोशल मीडिया के दौर में लोग अपनों से दूर होते जा रहे हैं। आस-पास बैठे हैं तब भी एक दूसरे को नहीं देखते हैं। ऐसा लगता है फोन ने जहां सुविधा बढ़ाई है सोशल मीडिया ने जहां सुविधा बढ़ाई है वहां असुविधा का भी अम्बार लगता जा रहा है। कोविड के बाद देखने को मिला है कि लोग फोन पर निर्भर हो गए हैं सोशल मीडिया पर रील्स बनाने में निर्भर हो गए हैं कि अपने बच्चों का भी ध्यान नहीं रख रहे हैं। मानव व्यवहार में कमी आती जा रही है एक दूसरे से सामाजिक रूप से दूर होते जा रहे हैं। जो पारिवारिक कार्यक्रम होते हैं वह भी नहीं हो रहे हैं। नजदीकियां बढ़ाने की बजाए दूरियां ज्यादा ही पैदा हो रही है । सोशल मीडिया बहुत जरूरी है लेकिन कभी भी सोशल मीडिया को अपने जीवन का अहम हिस्सा नहीं बनने देना चाहिए अपने जीवन का अहम हिस्सा हमारे आपस के संबंध व्यवहार रिश्तेदार और मित्र गण होते हैं। लोग अक्सर तब ध्यान कर पाते हैं जब उनसे इतनी दूरियां हो जाती हैं कि वह कभी भी नहीं मिल पाते। ऐसे में हमारे विशेष संवाददाता कुमार ने जाने-माने मनोचिकित्सक डॉक्टर ओम प्रकाश उपचिकित्सक अधिकारी प्रोफेसर एवं यूनिट प्रमुख मनोचिकित्सक विभाग ईभास अस्पताल दिल्ली से खास चर्चा की।

डॉ ओम प्रकाश का कहना है कि सोशल मीडिया बहुत जरूरी है वह जीवन का अहम् हिस्सा बनता जा रहा है और लोगो को अपनों से दूर करता जा रहा है। ऐसे में लोगों को एक बार में 30 मिनट से ज्यादा कभी भी फोन का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। दिन में जब जरूरी हो तो फोन का इस्तेमाल करें वैसे भी फोन से दूर रहे बच्चों पर भी ध्यान दे दें और बड़ों का भी ध्यान दें। सोशल मीडिया कोविड के बाद लोगों के जीवन का अहम् हिस्सा बन गया है लोग इससे आगे तो जरूर बढ़ रहे हैं लेकिन अपने करीबी संबंधों से दूरियां बना बैठे हैं। जिसकी वजह से दिमागी असंतुलन की हालत में चले जा रहे हैं ऐसे लगातार केस डॉ ओम प्रकाश के सामने आ रहे हैं और वह आने वाले डॉक्टरो को भी इस नई समस्या से जूझने की शिक्षा दे रहे है. डॉ ओम प्रकाश का कहना है अब तो ऐसे केसेस बहुत छोटे उमर के बच्चों में भी देखने को मिल रहे है । माँ बाप अपनी जान छुड़ाने के लिए छोटे बच्चों को रोने से बचाने के लिए मोबाइल का सहारा देते जा रहे हैं। आउट डोर गेम तो बिल्कुल ही बंद हो गए हैं जो बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए बहुत ही ज्यादा जरूरी हुआ करते थे।

पति पत्नी के संबंधों में भी बहुत दूरियां आती जा रही हैं जैसे कि वह आपस में एक दूसरे को समय नहीं दे पा रहे जिसके कारण तलाक हों रहे रहे है और तनाव व आत्म हत्या के कारण बढ़ते चले जा रहे हैं। लोगों को सोशल गैदरिंग में आपस में हिस्सा जरूर लेना चाहिए एक दूसरे के साथ समय बिताना चाहिए। देखा जा रहा है कि लोग अपने सामाजिक संबंधों में भी खाली सोशल मीडिया का सहारा लेकर अपनी संवेदनाये जैसे खुशी और सारी चीजें सोशल मीडिया पर ही व्यक्त करके फ़ारिक होते चले जा रहे हैं।बच्चों में एडीएचडी नामक बीमारी ध्यान अभाव एवं अति सक्रियता विकार तेजी से बढ़ता जा रहा है, अभिभावक इससे बहुत अनजान है लेकिन उनको यह समझ में नहीं आ रहा है कि आने वाले वक्त में यह बीमारी इतना बढ़ जाएगी कि बच्चे अपनी पढ़ाई से और अपने परिवार से ही दूरी बना लेंगे उनको आउटडोर गेम्स भी नहीं आते। किसी बहाने माता-पिता को अपने बच्चों को घर से बाहर निकालना ही होगा पार्कों में ले जाना होगा बच्चों से मिलना होगा और उनको आउट डोर भेजना होगा। किसी बहाने कोई न कोई समान लेने के लिए जरूर भेजना होगा ताकि बच्चे अपने पुराने तौर-तरीके सीख पाएं और अपनी शारीरिक गतिविधि ज्यादा मजबूत कर पाये।

अब ज्यादा देखा गया है कि बहुत ज्यादा उम्र के लोग और युवा भी हाइपोकॉन्ड्रिअकल डिसऑर्डर बीमारी का शिकार होते चले जा रहे हैं ऐसे में मरीज को ज्यादा यह लगता है कि वह किसी बड़ी बीमारी का शिकार हो गया है क्योंकि यह सारे कारण अकेलेपन का होना है वह अक्सर यह महसूस करता है कि उसको एक बड़ी बीमारी है और वह उसको महसूस भी कर रहा है। जिसका कारण यह है की कोई उसका अपना न होना। ज्यादा इंटरनेट का सहारा लेना अधूरे डॉक्टर बनना। ऐसे में लोग शादी समारोह में जरूर जाएं किसी की सोशल गैदरिंग में जरूर जाएं जब इंसान को यह बीमारी लगती है तो उसको ऐसा लगता है कि वह बहुत बड़ी बीमारी का शिकार हो चला जा रहा है अक्सर वह बीमारी को बस मन में बैठाता है जबकी वह बीमारी नहीं होती है और वह बीमारी के लक्षण तकलीफ देती है वह सब कुछ महसूस कर रहा होता है अगर उसको अपनों का साथ मिल जाए सोशल मीडिया से वह दूर रहे तो वह इस तरह की आने वाली कई बीमारियों से बच सकता है।

लोग मूमेंट टच भूलते जा रहे हैं और यह समस्या कोविड के बाद और जरुरत से ज्यादा हो गई लोग इंटरनेट के माध्यम से खुद के डॉक्टर होते जा रहे हैं लोगों में एक दूसरे के लिए इमोशन खत्म हो गए है। लोग सारे त्यौहारों से भी दूर हो गए हैं। ऐसा लगता है सारे त्यौहार शादी ब्याह सुख दुख सब सोशल मीडिया पर ही सिमट कर रहे गए है। ऐसा नहीं है कि सोशल मीडिया पूरी तरह से गलत है सोशल मीडिया में कुछ अच्छी चीजें भी हैं। लेकिन उपयोग पर निर्भर है। उनमें अच्छी कहानियां आती हैं अच्छे गाने आते हैं अच्छे गेम आते हैं वह सीखें उसके माध्यम से अपने को आगे बढ़ाये। जितना हो सके पार्कों में जाएं खुले में जाएं फोन का सहारा सिर्फ उतना ही ले जितना जरूरी हो अगर आपका काम है सोशल मीडिया से तो सिर्फ काम करें और उसको साइड में रखें अपने परिवार में समय बिताएं एक्सरसाइज करें योग करें और अपने बच्चों को समय दे।

जिससे आगे चलकर बच्चे आपसे खाली सोशल मीडिया के बारे में ही न सीखे अपितु बाकि चीज़ो के बारे में भी सीखे आगे चलकर बहुत सारे अवसर आने वाले हैं। अगर आप सोशल मीडिया के ऊपर ही निर्भर रहेंगे तो आपके बच्चे का संपूर्ण मानसिक और शारीरिक विकास नहीं हो पायेगा। डॉक्टर ओम प्रकाश ने हमारे माध्यम से सभी के लिए ये विशेष जानकारी दी है। वह स्वयं अकेलेपन से होने वाली नई बीमारियों को लेकर समाज के लिए बहुत चिंतित दिखे उन्होंने बताया कि उनके पास अब बहुत छोटे-छोटे उम्र के बच्चे भी आ रहे हैं जो पढ़ाई में ध्यान नहीं दे रहे हैं स्कूलों को भी सोचना चाहिए कि वह ज्यादा सोशल मीडिया के मध्यम से ही पढ़ाई न करवाए और शारीरिक गतिविधि पर भी ध्यान दे ताकि बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास पूरी तरह से हो सके सोशल मीडिया पर विकास जरूरी है लेकिन वह इतना जरूरी नहीं है कि अपनों से भी आगे बढ़ जाए।

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