आमिर खान की ये ‘लापता लेडीज’ दिल जीत लेती हैं, एक्स्ट्रा रुमाल लेकर जाइएगा फिल्म देखने

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आमिर खान की ये ‘लापता लेडीज’ दिल जीत लेती हैं, एक्स्ट्रा रुमाल लेकर जाइएगा फिल्म देखने

 

हम सभी जानते हैं कि आमिर खान एक परफेक्शनिस्ट हैं, वो अपनी फिल्मों में जान लगा देते हैं, सालों देते हैं, और अब उनके करियर में भी ऐसा ही हो रहा है, आमिर खान प्रोडक्शन की ‘लापता लेडीज’ में आमिर खान का टच साफ नजर आता है। जी हां, निर्देशक किरण राव ने वही जादू पैदा किया है जिसके लिए आमिर जाने जाते हैं, बड़े सितारों, बड़े सेटों, महंगे परिधानों के बिना भी, किरण ने दिखा दिया है कि उन्होंने आमिर से परफेक्शन सीखा है और वह बॉलीवुड में सर्वश्रेष्ठ में से एक हैं। और वह बड़े और बेहतर काम कर सकती हैं.

कहानी

1 ट्रेन में 2 ऐसे जोड़े चढ़ते हैं जिनकी अभी अभी शादी हुई है. दोनों दुल्हनों के चेहरे पर बड़ा सा घूंघट है. ट्रेन से उतरने की जल्दी में ये दोनो कैसे लापता हो जाती हैं और फिर क्या होता है यही कहानी है. ट्रेलर से कहानी का अंदाजा ज्यादा लगा नहीं और हम भी बताएंगे नहीं क्योंकि ऐसी फिल्मों के लिए सिनेमा हॉल जरूर जाइए.

कैसी है फिल्म

ये ऐसी फिल्म है जो ये बताती है कि अगर कहानी को सही तरीके से पेश किया जाए तो कुछ मायने नहीं रखता, न कोई खान, न कपूर, न कुमार. 2 घंटे की ये फिल्म 15 मिनट में मुद्दे पर आती है और हर पल कहानी आगे बढ़ती हैं, कहीं आपको फोन चेक करने और बाहर जाने का मौका नहीं मिलता. ये फिल्म एक बेहद अहम मुद्दे को इतने एंटरटेनिंग तरीके से बताती है कि आपको अहसास भी नहीं होता की आपको ज्ञान दिया जा रहा है और आप वो ज्ञान ले भी चुके होते हैं. यही तो सिनेमा की खासियत है या फिर कहें अच्छे और सधे हुए सिनेमा की खासियत है. फिल्म का हर किरदार जरूरी है. चाहे वो एक होटल में बर्तन धोने वाला छोटा सा लड़का ही क्यों ना हो. ये फिल्म आपसे बहुत कुछ कह जाती है लेकिन इतने हल्के फुल्के अंदाज में कि आपको यकीन नहीं होता. फिल्म आपको काफी रुलाती है तो रुमाल लेकर जाएं, वो भी एक्स्ट्रा. स्पर्श श्रीवास्तव इससे पहले वेब सीरीज जामतारा में दिख चुके हैं लेकिन फिल्म उनकी ये पहली है और वो खूब जमे हैं. एक गांव के लड़के की बॉडी लैंग्वेज को उन्होंने गजब अंदाज में पकड़ा है. रवि किशन पुलिसवाले के किरदार में हैं. ट्रेलर से ही उनका रंग जम गया था और फिल्म में वो नई जान डाल देते हैं. वो जब स्क्रीन पर आते हैं कमाल का एंटरटेनमेंट करते हैं. दुर्गेश कुमार का काम भी काफी अच्छा है.

डायरेक्शन

किरण राव सही मायने में फिल्म की हीरो हैं. उनका डायरेक्शन परफेक्ट है. उन्होंने फिल्म में हर छोटी से छोटी डिटेल पर अच्छे से काम किया है. सिचुएशन से लेकर सेट तक हर चीज में उनकी मेहनत दिखती है. वो करीब 11 साल बाद डायरेक्शन में वापस आई हैं. इससे पहले धोबी घाट बना चुकी हैं. फिल्म देखकर लगता है कि देर से लेकिन दुरुस्त आई हैं. उन्हें और मौके मिलें तो वो कमाल का सिनेमा बना सकती हैं.

एक्टिंग

फिल्म के तीनों एक्टर नए हैं. नितांशी गोयल ने फूल का किरदार निभाया है. उनकी मासूमियत आपका दिल जीत लेती है. ऐसा नहीं लगता कि वो नई कलाकार हैं. उनका बात करने का तरीका, चलने का तरीका, अपने पति की साइकिल के पीछे बैठने का तरीका, इतना परफेक्ट है कि आपको वो एक गांव की लड़की ही लगती हैं. प्रतिभा रांटा ने भी अपने किरदार में जान डाल दी है. वो भी इतनी परफेक्ट लगती हैं की आपको नहीं लगता कि एक्टिंग कर रही हैं. कब वो आपको कुछ सिखा जाती हैं आपको पता भी नहीं चलता.

म्यूजिक

राम संपत का म्यूजिक इस शानदार फिल्म को और शानदार बना देता है. गाने सिचुएशन के हिसाब से फिट हैं और फिल्म की पेस को आगे बढ़ाते हैं. गाने आते हैं तो मजा आता है. अखरते नहीं हैं.

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