अजय देवगन छाए हुए हैं, अजय देवगन ने थिएटर को स्टेडियम बना डाला, इंडियन फुटबॉल टीम के महान कोच की ये कहानी जरूर देखिए

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अजय देवगन छाए हुए हैं, अजय देवगन ने थिएटर को स्टेडियम बना डाला, इंडियन फुटबॉल टीम के महान कोच की ये कहानी जरूर देखिए

 

क्या यह चक दे इंडिया है? जब भी कोई स्पोर्ट्स फिल्म आती है तो मेरे मन में सबसे पहले यही सवाल आता है और रिव्यू शुरू करने से पहले मैं आपको बता दूं कि यह चक दे इंडिया नहीं है लेकिन यह फिल्म देखने लायक है, यह फिल्म 3 घंटे लंबी है। पहला भाग बहुत अच्छा नहीं है लेकिन यह फिल्म देखने लायक है क्योंकि दो घंटे का दूसरा भाग आपको सैयद अब्दुल रहीम की कहानी से बहुत कुछ सीखने और सीखने के लिए प्रेरित करता है।

कहानी

ये कहानी है 1952 से 1962 के बीच इंडियन फुटबॉल टीम के कोच रहे सैय्यद अब्दुल रहीम की जिन्होंने अपनी जिंदगी फुटबॉल को दे दी, उनकी वजह से टीम इंडिया को ब्राजील ऑफ एशिया का खिताब मिला, टीम इंडियन ने एशियन गेम्स में गोल्ड जीता. कैसे वो कैंसर और फुटबॉल फेडरेशन की राजनीति से लड़कर टीम इंडिया के लिए कामयाबी की नई कहानी लिख गए, यही इस फिल्म में दिखाया गया है.

कैसी है फिल्म

फर्स्ट हाफ में फिल्म स्लो लगती है, कहीं कहीं बोरिंग भी लगती है, कैसे जल्दी से टीम बन जाती है और सब कुछ हो जाता है, लगता है किरदारों को ठीक से पनपने नहीं दिया गया. 3 घंटे की फिल्म में 1 घंटे बाद ही इंटरवल हो जाता है और ये खटकता है लेकिन फिर जब सेकेंड हाफ शुरू होता है तो 2 घंटे के सेकेंड हाफ में आपको हिलने का मौका नहीं मिलता. टीम इंडिया के मैच के सीन थिएटर को स्टेडियम में बदल देते हैं. फिल्म के जरिए आप रहीम साहब की कहानी को अच्छे से समझते हैं.उस इंसान की जिद और जुनून से रूबरू होते हैं जिसने इंडियन फुटबॉल को सबसे ऊंचा मुकाम दिलाया. फिल्म में कमियां भी हैं, फर्स्ट हाफ तो कमजोर ही है, साथ ही आप खिलाड़ियों से कनेक्ट नहीं करते, उस तरह का इमोशन फील नहीं करते जैसा चक दे इंडिया में हुआ था. टीम के तौर पर तो आप कनेक्ट करते हैं. आखिर में जब टीम के असली खिलाड़ियों की और इन कलाकारों की तस्वीरें साथ में दिखती हैं तो आप कास्टिंग की तारीफ करते हैं लेकिन इमोशन कहीं ना कहीं कम लगता है. लेकिन कुल मिलाकर सेकेंड हाफ आपके अंदर टीम इंडिया के लिए जोश भर देता है.

एक्टिंग

पूरी फिल्म में अजय देवगन छाए हुए हैं, ये उनके बेहतरीन कामों में से एक है.अजय ने इस किरदार के साथ पूरा इंसाफ किया है.रहीम साहब के इमोशन्स को उन्होंने पर्दे पर शानदार तरीके से पेश किया है. टीम के सभी किरदारों का काम अच्छा है. खेल पत्रकार के किरदार में गजराज राव शानदार हैं. अजय की पत्नी के किरदार में प्रियामणि जमी हैं. अभिलाष थपलियाल कमेंटेंटर बने हैं और खूब जचते हैं, आपको यहां उनकी एक्टिंग रेंज का एक और नमूना दिखता है.

डायरेक्शन

अमित शर्मा का डायरेक्शन अच्छा है, वो बधाई हो जैसी कामयाब फिल्म बना चुके हैं. यहां वो फिल्म की लंबाई के मामले में चूके हैं, फिल्म छोटी हो सकती थी, थोड़े इमोशन और डाले जाने चाहिए थे लेकिन टीम इंडिया के मैच के सीन गजब तरीके से फिल्माए गए हैं, वो आपके अंदर जोश भर देते हैं.

म्यूजिक

ए और रहमान का म्यूजिक और मनोज मुंतशिर के बोल शानदार हैं, इस फिल्म से टीम इंडिया को अब नया एंथम भी मिलेगा. कुल मिलाकर ये कहानी जाननी जरूरी है और ये फिल्म देखी जानी चाहिए, ये एक साफ सुथरी फिल्म है जिसे पूरे परिवार के साथ आराम से देख सकते हैं.

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