क्या ‘प्रेस पंजीकरण विधेयक’ से सच में मीडिया होगा ‘आजाद’? जानिए इस कानून से न्यूज सेक्टर में क्या-क्या होंगे बदलाव
क्या ‘प्रेस पंजीकरण विधेयक’ से सच में मीडिया होगा ‘आजाद’? जानिए इस कानून से न्यूज सेक्टर में क्या-क्या होंगे बदलाव
Education Desk | Maanas News
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में प्रेस की कितनी बड़ी भूमिका रही है ये तो हम सभी को पता है. प्रेस आजादी के बाद से ही बहुमत और विचार के स्वतंत्रता की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है. लेकिन, ऑनलाइन मीडिया और इंटरनेट के आने के बाद से दुनिया भर में सूचनाओं के पहुंच का दायरा भी बढ़ा है. आज के जमाने में कोई भी व्यक्ति घर बैठे-बैठे बड़ी ही आसानी से किसी भी देश में क्या चल रहा है इसकी जानकारी पा सकता है.
ये तो हुई इंटरनेट के फायदों की बात, लेकिन इस बात में कोई दोराय नहीं है कि दुनिया को इंटरनेट का जितना फायदा मिला है, उतना ही नुकसान भी हुआ है. इन नुकसानों में एक है आम लोगों तक गलत सूचना का पहुंचाया जाना, जिसे हम फेक न्यूज भी कहते हैं. ऐसे में केंद्र सरकार ने भारत में प्रेस की स्वतंत्रता और व्यापार में सुगमता लाने के लिए एक नए युग की शुरुआत की है.
दरअसल 3 अगस्त को राज्यसभा में पारित होने के बाद, प्रेस और आवधिक पंजीकरण विधेयक, 2023 को 21 दिसंबर को लोकसभा में भी पारित कर दिया गया. इस विधेयक को प्रेस एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ पीरियॉडिकल बिल (PRP Bill) भी कहा जाता है.
अब अगर यह विधेयक आने वाले दिनों में कानून की शक्ल लेता है तो यह प्रेस और पुस्तक के पंजीकरण अधिनियम 1867 और औपनिवेशिक युग के एक और कानून की समाप्ति मानी जाएगी.
ऐसे में इस रिपोर्ट विस्तार से समझते है कि प्रेस बिल 2023 क्या है और यह बिल 1867 के प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम के कितना अलग है
क्या है नया प्रेस बिल 2023?
प्रेस और आवधिक पंजीकरण विधेयक 2023, ऑनलाइन माध्यम से पत्र-पत्रिकाओं के शीर्षक और पंजीकरण के आवंटन की प्रक्रिया को सरल बनाता है. आसान भाषा में समझे तो वर्तमान में जो कानून है उसके अनुसार अगर कोई व्यक्ति पीरियॉडिकल, पत्रिका या अखबार छपवाना चाहे तो सबसे पहले उसे उस पत्रिका को रजिस्टर करवाना होगा.
इतना ही नहीं उस रजिस्ट्रेशन का नियम भी आसान नहीं है. इसके लिए उस व्यक्ति को कई स्तर की कागजी कार्रवाई करनी होती है. इस कार्रवाई में काफी लंबा वक्त भी लग सकता है. लेकिन सरकार के नए बिल में इसी रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को थोड़ा आसान किया गया है.
क्या है पुराना कानून?
प्रेस और आवधिक पंजीकरण विधेयक साल 1867 में तैयार किया गया था. उस वक्त भारत में ब्रिटिश राज हुआ करता था. इस कानून को प्रेस, समाचार पत्रों और पुस्तकों के प्रकाशकों पर पूर्ण नियंत्रण रखने के लिए लाया गया था. इस कानून के तहत कोई भी प्रकाशक या व्यक्ति तय किए गए नियमों का उल्लंघन करता है तो उसे कारावास सहित भारी जुर्माना और दंड देना पड़ेगा.
अब नए बिल को पेश करते वक्त सरकार ने भी यही तर्क दिया की भारत में मीडिया की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए पुराने कानून को खत्म करके नए कानून को लागू करना जरूरी है. केंद्र सरकार के अनुसार अंग्रेजों का बनाया गया यह कानून आज के मीडिया की जरूरतों और व्यवसाय से पूरी तरह से मेल नहीं खाता है.
विस्तार से समझिए 1867 के कानून से कितना अलग है ये विधेयक
1. प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम 1867 कानून के तहत जिलाधिकारी के पास किसी भी पत्रिका के रजिस्ट्रेशन को सस्पेंड करने या कैंसिल करने का अधिकार होता है. लेकिन, प्रेस बिल 2023 के पास होने के बाद ये रजिस्ट्रेशन करने का अधिकार प्रेस रजिस्ट्रार जनरल के पास हो जाएगा.
2. पुराने कानून के मुताबिक पीरियॉडिकल, पत्रिका या अखबार के प्राकशकों को प्रकाशन से पहले डीएम को शपथ पत्र देना पड़ता है. लेकिन, नए विधेयक में इस तरह की कोई शर्त नहीं तय की गई है. इसका मतलब है कि प्रकाशक को डीएम को शपथ पत्र देने की जरूरत नहीं होगी.
3. प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम 1867 कानून के अनुसार कोई भी अखबार या पत्रिका के गलत जानकारी छापने पर प्रकाशक को कम से कम 2 हजार का जुर्माना और 6 महीने की जेल हो सकती थी. लेकिन नया नियम कहता है कि जेल केवल उसी स्थिति में हो सकती है जब कोई व्यक्ति बिना रजिस्ट्रेशन के पत्रिका-अखबार छापने की कोशिश करे.
4. प्रेस बिल 2023 के अनुसार ऐसा कोई भी व्यक्ति जो पहले किसी आतंकी गतिविधि या किसी गैरकानूनी काम के लिए सजा काट चुका हो, देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करने का कोई कर चुका हो, उसे पत्रिका-अखबार छापने का अधिकार नहीं होगा.
5. इस कानून के दायरे में डिजिटल मीडिया- समाचार को भी लाया गया है. डिजिटल मीडिया के लिए भी वन टाइम रजिस्ट्रेशन यानी OTR के माध्यन से रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य होगा तभी वह कोई भी न्यूज दे पाएंगे. पहले डिजिटल मीडिया इस कानून के दायरे में नहीं आता था.
6. ऊपर बताए गए नियमों में बदलाव के अलावा प्रेस बिल 2023 में एक नया प्रावधान जोड़ा गया है. अपीलिय प्राधिकारी का. इस प्रावधान के तहत प्रेस और पंजीकरण अपीलीय बोर्ड बनाया जाएगा. इस बोर्ड में भारतीय प्रेस परिषद के एक अध्यक्ष और दो सदस्य होंगे. अगर किसी प्रकाशक को रजिस्टर करने से इंकार किया जाता है, पीआरजी द्वारा कोई जुर्माना लगाया जाता है या रजिस्ट्रेशन को टाला जाता है तो प्रकाशक इस बोर्ड के पास शिकायत दर्ज कर सकते हैं.
नए विधेयक में किस नियम में सजा का प्रावधान है
कोई भी पब्लिकेशन बिना रजिस्ट्रेशन के पत्रिका या अकबार छापता है तो ऐसी स्थिति में उस प्रकाशकों या व्यक्ति को पांच लाख का जुर्माना या छह महीने तक की कैद हो सकती है.
अगर आपने दिए गए समय पर एनुअल स्टेटमेंट नहीं दिया तो प्रकाशक, कंपनी या व्यक्ति को 20 हजार रुपये जुर्माने का प्रवाधान है.
इस विधेयक को पेश करते हुए सरकार ने क्या कहा
प्रेस और आवधिक पंजीकरण विधेयक, 2023 को लोकसभा में पेश करते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर कहते हैं- केंद्र सरकार द्वारा लाया गया यह विधेयक गुलामी की मानसिकता को खत्म करने और नए भारत के लिए नए कानून लाने की दिशा में मोदी सरकार के एक और कदम को दर्शाता है.
वह आगे कहते हैं कि नए कानूनों का मकसद देश में फेक न्यूज पर लगाम लगाना, अपराध को समाप्त करना, व्यापार करने में सरलता लाना सरकार की प्राथमिकता है. उन्होंने कहा कि स्वामित्व पंजीकरण प्रक्रिया में कभी-कभी 2-3 साल लग जाते थे, अब 60 दिनों में पूरी हो जाएगी.
पीआरपी विधेयक का समाचार पत्र उद्योग पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
पीटीआई की एक रिपोर्ट में इस सवाल के जवाब में इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी कहती है इस नए विधेयक को समाचार पत्र या प्रकाशकों को महत्वपूर्ण लाभ पहुंचाने के लिए लाया जा रहा है. पुराने कानून की बात करें तो उसमें केंद्र और राज्य सरकार के स्तर पर कई कार्यालय शामिल थे. जिसके कारण रजिस्ट्रेशन या किसी परमिशन लेने में काफी वक्त लग जाता था. अब नए कानून से उम्मीद है कि इस प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित किया जाएगा और प्रेस से जुड़े मामलों में सरकारी स्वीकृति को कम करने और इस सही तरीके से चलाने की सुविधा दी जाएगी.
क्या बिल का असर समाचार पत्रों की गुणवत्ता पर पड़ेगा
इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी ने इस सवाल के जवाब मे कहा कि जिलाधिकारी और पुलिस प्रमुखों की मंजूरी को हटाना एक पॉजिटिव कदम है. पुराने कानून में भारी जुर्माने के साथ साथ प्रेस पर पूर्ण नियंत्रण जैसे नियम थे.