Independence Day 2024: कहानी उन फ्रीडम फाइटर की, जिन्होंने 22-23 साल में ही हंसते-हंसते दे दी कुर्बानी

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Independence Day 2023: Story Of Five Young Freedom Fighters Who Helped  India To Get Independence - Amar Ujala Hindi News Live - Independence Day  2023:कहानी 5 युवा स्वतंत्रता सेनानियों की, कोई 23

Independence Day 2024: 15 अगस्त, 2024 को देश 78वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है. यह दिन भारतीयों के लिए बेहद खास है. इसी दिन ब्रिटिश उपनिवेशवाद के चंगुल से छूटकर हम सभी को आजादी मिली थी और  नई शुरुआत हुई थी.

हमें आजादी दिलाने के लिए कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान गंवा दी. कई फांसी के फंदे चूमे और कई अंग्रेजों की बर्रबरता का शिकार हुए. आज हम ऐसे ही 5 फ्रीडम फाइटर्स की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी. इनमें किसी की उम्र 22 साल तो किसी की सिर्फ 23 साल थी.

1. मंगल पांडे

स्वतंत्रता संग्राम के पहले हीरो मंगल पांडे का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया के नगवा गांव में हुआ था. 1849 में महज 22 साल के मंगल पांडे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हुए. वह पश्चिम बंगाल के बैरकपुर छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री में सैनिक थे. जहां गाय और सुअर की चर्बी वाली राइफल की कारतूसों का इस्तेमाल शुरू किया गया था. 9 फरवरी 1857 को मंगल पांडे ने इन कारतूस के इस्तेमाल से इनकार कर दिया.

ये बात अंग्रेजी हुकूमत को पसंद नहीं आई. 29 मार्च 1857 को अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन मंगल पांडे का राइफल छीनने की कोशिश की और मंगल पांडे ने उन्हें मार डाला. अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेन्ट बॉब भी मंगल पांडे के सामने नहीं टिक पाए. यहीं से मंगल पांडे ने अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ दी. 8 अप्रैल 1857 को 30 साल के मंगल पांडे को फांसी दे दी गई.

2. भगत सिंह

भगत सिंह का नाम बच्चा-बच्चा जानता है. 28 सितंबर, 1907 को उनका जन्म पंजाब के लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था. महज 23 साल की उम्र में भगत सिंह देश की आजादी के खातिर फांसी पर चढ़ गए थे. दरअसल, जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह को अंदर तक हिला डाला था. उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर नौजवान भारत सभा शुरू की और आजादी की लड़ाई में कूद गए.

1922 में चौरी चौरा कांड में महात्मा गांधी का साथ न मिलने के बाद वे चंद्रशेखर आजाद के गदर दल में शामिल हुए. काकोरी कांड में राम प्रसाद बिस्मिल समेत चार क्रांतिकारियों को फांसी और 16 को आजीवन कारावास होने के बाद भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 1928 में लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे जेपी सांडर्स को मार डाला.

फिर बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर नई दिल्ली में ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेंट्रल एसेंबली के सभागार में बम फेंकते हुए क्रांतिकारी नारे लगाए. भागने की बजाय उन्होंने अपनी गिरफ्तारी दी. ‘लाहौर षड़यंत्र’ का उन पर मुकदमा चला और 23 मार्च, 1931 की रात फांसी दे दी गई. तब उनकी उम्र सिर्फ 23 साल थी.

3. चंद्रशेखर आजाद

चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाबरा में हुआ था. 14 साल की उम्र में आजाद बनारस आ गए और संस्कृत पाठशाला में पढ़ाई की. यहीं उन्होंने कानून भंग आंदोलन में हिस्सा लिया. 1920-21 में आजाद गांधीजी के असहयोग आंदोलन से आजाद जुड़े और 1926 में काकोरी ट्रेन कांड, फिर वाइसराय की ट्रेन को उड़ाने की कोशिश, 1928 में लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने सॉन्डर्स पर गोली चलाई.

27 फरवरी, 1931 को तब इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में क्रांतिकारी साथियों से चर्चा कर रहे थे, तभी सीआईडी एसएसपी नॉट बाबर वहां पहुंचा और पुलिस फोर्स के साथ चंद्रशेखर आजाद पर गोली चलाई. इसमें आजाद ने तीन पुलिसवालों को मार गिराया लेकिन जब आखिरी गोली बची तो अंग्रेजों के हाथ आने की बजाय खुद को गोली मार ली. तब उनकी उम्र सिर्फ 25 साल थी.

4. राजगुरु

शिवराम हरि राजगुरु का जन्म 24 अगस्त 1908 में पुणे के खेड़ा गांव में हुआ था. उन्हें लोग राजगुरु के नाम से जानते हैं. 6 साल की उम्र में पिता के निधन के बाद बनारस आकर संस्कृत की पढ़ाई की. यहीं चंद्रशेखर आजाद के हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़े और अंग्रेज अफसर सॉन्डर्स की हत्या में शामिल हुए. असेंबली में बम ब्लास्ट करने में भगत सिंह के साथ राजगुरु भी शामिल हुए और 23 मार्च 1931 को 23 साल की उम्र में उन्हें भगत सिंह और सुखदेव के साथ फांसी दे दी गई.

5. सुखदेव 

सुखदेव थापर का जन्म पंजाब के लुधियाना में 15 मई 1907 में हुआ था. जन्म से तीन महीने पहले ही उनके पिता का निधन हो गया था. सुखदेव लाला लाजपत राय से प्रभावित होकर उन्हीं की मदद से चंद्रशेखर आजाद की टीम का हिस्सा बने. लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए उन्होंने अंग्रेज अफसर सॉन्डर्स को मारने वाले क्रांतिकारियों में शामिल हुए. सुखदेव ने राजनीतिक बंदियों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार के खिलाफ भी आंदोलन चलाया. 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु के साथ उन्हें भी फांसी दे दी गई. तब उनकी उम्र सिर्फ 23 साल थी.

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