मोदी लहर के बावजूद जीता था चुनाव, जेल में ही गुजर गई सांसदी, जानें सियासी समीकरण
मोदी लहर के बावजूद जीता था चुनाव, जेल में ही गुजर गई सांसदी, जानें सियासी समीकरण
उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में शामिल घोसी सीट का इतिहास पौराणिक और गौरवपूर्ण है। बहुजन समाज पार्टी के अतुल राय अब घोसी के डिप्टी हैं। 2019 में एसपी-बीएसपी गठबंधन में लोकसभा चुनाव जीता. आजादी के बाद 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सांसद अलगू राय शास्त्री ने सीट जीती थी.
शास्त्री ने स्वतंत्रता संग्राम में अहम योगदान दिया था. इस दौरान वह कई बार जेल भी गए थे. इसके बाद 1957 में दूसरी बार हुए आम चुनाव में भी इस सीट पर कांग्रेस ने जीत हासिल की थी और उमराव सिंह संसद पहुंचे थे. हालांकि, 1962 में यह सीट वामदलों के कब्जे में चली गई और यहां से पहली बार गैर कांग्रेस कैंडिडेट जय बहादुर सिंह चुनाव जीते. इसके बाद 1969 में सीपीआई से झारखंडे राय सांसद बने.
1977 में वामपंथियों का कब्जा
वामपंथियों के बाद यह सीट 1977 में जनता पार्टी के पास पहुंचा और यहां से शिवराम राय ने चुनाव जीता. 1980 में यहां से एक बार फिर झारखंडे राय चुनाव जीतने में सफल हुए और यह सीट फिर से वामपंथियों के पास आ गई. 1984 में फिर कांग्रेस की वापसी हुआ और राजकुमार राय ने बाजी मारी. इसके बाद 1989 में कांग्रेस के कल्पनात राय घोसी लोकसभा सीट से चुनाव जीते.
1991 में कल्पनाथ दूसरी बार कांग्रेस के टिकट पर संसद पहुंचे. हालांकि, 1996 में कल्पनाथ राय को कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया. हालांकि, उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़कर घोसी से जीत का परचम लहराया. इसके बाद 1998 में कल्पना राय समता पार्टी से चुनाव जीतने में सफल रहीं. इसके बाद 1999 में हुए मध्यवर्ती चुनाव में यहां से बीएसपी की बालकृष्ण चौहान विजयी हुए.
मोदी लहर में बीएसपी प्रत्याशी की जीत
इसके बाद 2004 में इस सीट पर सपा से चंद्र देव राजभर, 2009 में बीएसपी के दारा सिंह चौहान चुनाव जीते. 2014 में पहली बार इस सीट पर बीजेपी ने जीत हासिल की. हाालंकि, मोदी लहर के बावजूद 2019 में यहां बीजेपी कमल खिलाने में विफल रही और बीएसपी प्रत्याशी अतुल राय ने सीट पर कब्जा कर लिया.
फिलहाल अतुल राय रेप सहित कई अन्य मामलों में जेल में बंद हैं. घोसी लोकसभा क्षेत्र में कुल 20 लाख 55 हजार वोटर्स हैं. इसमें लगभग 10 लाख 90 हजार पुरुष और 9 लाख 65 हजार महिला वोटर्स हैं.